Draft:UMA LAKHANPAL
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स्वर्गीय श्रीमती उमा लखनपाल के बारे में - स्वर्गीय श्रीमती उमा लखनपाल एक ऐसी महान आंदोलनकारी थीं जो ज़ोर, ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ और इंसाफ के लिए पूरे जनविरोधी सिस्टम से अकेले ही टकरा गईं और ऐसी ऐतिहासिक और अद्वितीय लड़ाई लड़ी कि बड़े बड़े संगठन भी नहीं लड़ सकते हांलांकि इस जनविरोधी सिस्टम ने उन्हें तबाह, बर्बाद करके मिटा दिया लेकिन उनका संघर्ष हमेशा इंसाफ पसंद सच्चे लोगों के लिए और गरीबों, शोषित, पीड़ित और वंचित लोगों के लिए एक प्रेरणा बना रहेगा। हालांकि पूंजीपतियों का मीडिया और सरकारें ऐसी संघर्षशील महिलाओं का बायकाट करेंगे जबकि फिल्म ऐक्ट्रेस, मिस इंडिया और राजनीति से जुड़ी नकारा और भ्रष्ट, दिखावटी महिलाओं को अपने अखबारों, टीवी और दूसरी जगहों पर खूब ग्लैमर के साथ जनता के सामने पेश करेंगे।
श्रीमती उमा लखनपाल के लंबे और ऐतिहासिक संघर्ष के कारण ही हिंदुस्तान में बेटियों को बेटों के बराबर पिता की संपत्ति में अधिकार देने का कानून बना।
महान आंदोलनकारी स्वर्गीय श्रीमती उमा लखनपाल के व्यक्तित्व की कुछ जानकारी - श्रीमती उमा लखनपाल बहुत ही सरल और मासूम महिला थीं। उनका जन्म 30.11.1964 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ था। उनका स्वभाव बिल्कुल एक बच्चे जैसा था। प्राकृतिक और मानवीय गुणों के साथ-साथ वह दया, करुणा और मातृत्व से भरी एक संवेदनशील महिला थीं। उनकी शिक्षाएँ थीं कभी किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, कभी किसी के अधिकारों का हनन न करना, कभी झूठ न बोलना, साथ में खुशी-खुशी रहना, लोगों में कभी भेदभाव न करना। संक्षेप में, सबका भला सबकी ख़ुश। उन्हें न केवल संगीत का बहुत शौक था बल्कि वह लता मंगेशकर के गीतों को भी हूबहू गा सकती थीं। उनकी आवाज भी बहुत अच्छी थी लेकिन उनकी यह प्रतिभा भी आंदोलन का भेंट चढ़ गई। उन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की थी। शादी से पहले, उन्होंने जीविकोपार्जन के लिए निजी स्कूलों में पढ़ाया भी। 1991 में उनका विवाह श्री सुप्रिय लखनपाल से हुआ और 1993 में उनके इकलौते बेटे श्री सौहार्द लखनपाल का जन्म हुआ। उमा ब्रेस्ट कैंसर की शिकार हो गईं और दो साल तक कैंसर और सिस्टम दोनों से लड़ती रहीं क्योंकि कैंसर के इलाज के दौरान भी उन्हें बेहद अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ा और विपक्ष और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया और आखिरकार 17 सितंबर 2022 को वे हमेशा के लिए प्रकृति में विलीन हो गईं। हालांकि जाने से पहले उन्हें पैसों के अभाव में कैंसर के इलाज से वंचित रहना पड़ा, लेकिन उन्होंने इस मोर्चे पर भी हार नहीं मानी और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां से उनके पक्ष में ऐतिहासिक आदेश पारित हुआ, जो अन्य गरीब और असहाय लोगों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने के लिए मिसाल का काम कर रहा है। लेकिन यह बेहद दुखद रहा कि इस आदेश के बावजूद उनके कैंसर का इलाज नहीं हो सका। इस मुद्दे पर हम फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे या कोई लेख प्रकाशित करेंगे।
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